Amethi UP : छठी महिलाओं ने ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर किया पूजन अर्चन

 

संग्रामपुर/अमेठी। जिले के विकास खण्ड संग्रामपुर में लोक आस्था के महा पर्व पर छठी महिलाओं ने डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा किया।

इस पूजा को करने के लिए सुहागिन महिलाएं नाक से लेकर मांग तक लंबा सिंदूर लगाती हैं। इसे पति की लंबी उम्र और दांपत्य जीवन की खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान महिलाएं लाल की बजाय नारंगी रंग का सिंदूर लगाती हैं। इसका कारण यह है कि नारंगी रंग सूर्य का प्रतीक है और छठ पर्व सूर्य की उपासना का पर्व है। इसलिए नारंगी सिंदूर लगाने से सूर्य देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। साथ ही यह माना जाता है कि सुहागिन महिला का जितना लंबा सिंदूर होगा, उसका दांपत्य जीवन उतना ही लंबा और सुखी होगा।

पीठाधीश्वर कालिकन धाम श्री महराज ने बताया कि छठ महापर्व पर उगते और डूबते हुए सूर्यदेव की उपासना का विशेष महत्व होता है। छठ महापर्व पर सूर्यदेव को अर्घ्य देते हुए मंत्रों का जाप जरूर करना चाहिए। तांबे के लोटे में जल, रोली, लाल फूल, चावल और शक्कर डालकर सूर्य को अर्घ्य दें। सूर्यास्त के समय सूर्य देव और छठी मैइया की पूजा-आराधना का खास महत्व होता है।

छठ पूजा के तीसरे दिन व्रती महिलाओं के द्वारा पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को जल चढ़ाया जाता है। छठ पर्व पर सूर्यास्त और सूर्योदय पर अर्घ्य देने का महत्व है। छठ महापर्व चार दिनों तक चलता है, जिसमें तीसरे दिन का खास महत्व होता है। इस दिन को संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। ऐसे में आज शाम सूर्य को अर्घ्य दिया जात है। जिसमें व्रती निर्जला व्रत रखते हैं। इस दिन प्रसाद में ठेकुआ अर्पित किया जाता है। शाम को सूर्यास्त पर सूर्यदेव को अर्घ्य और छठी मैया की पूजा का विधान होता है।

फिर चौथे दिन यानी सप्तमी तिथि पर सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण होता है। देशभर में छठ पूजा का उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। छठ पूजा सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित होता है। षष्ठी तिथि के दिन जब सूर्य अस्त होता है, तब डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर व्रत पूर्ण किया जाता है। इस अवसर पर विधि-विधान से पूजा कर छठी मैया की कथा का पाठ करना शुभ माना जाता है। इस दौरान शुद्धता, स्वच्छता का खास ध्यान रखा जाता है। छठ पर्व के दौरान प्याज, लहसुन और मांस का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रती महिलाओं को मिट्टी या फिर कांसे के बर्तनों में ही प्रसाद तैयार करना चाहिए। छठ पूजा की सामग्री में फल और बांस की टोकरी को जरूर शामिल करना चाहिए।

पुराणों में सूर्य पूजा का महत्व सूर्योपासना का लोकपर्व छठ, छइठ या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। छठी मैया के इस त्योहार को साल में दो बार मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्लपक्ष की षष्ठी पर मनाए जाने वाले इस त्योहार को चैती छठ कहा जाता है और कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ त्योहार को कार्तिकी छठ कहा जाता है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय के साथ छठ पर्व का आरंभ होता है और अगले चार दिनों तक यह पर्व मनाया जाता है।

इस दिन महिलाएं व्रत कर के संतान प्राप्ति और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। छठ पर्व पर सूर्य को अर्घ्य देकर और छठ मईया की पूजा और आरती करके उनका आभार व्यक्त किया है। छठ पूजा पर सूर्य उपासना का महत्व आज बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में लोक आस्था का महापर्व छठ मनाया जा रहा है। सूर्य उपासना का सबसे बड़ा दिन छठ का त्योहार होता है।

इसी कड़ी में संग्रामपुर क्षेत्र में संतोष पंडा, बसंत लाल, मुन्नी लाल, शंकर पंडा, शिव कुमार सिंह, लाल साहब सिंह सहित दर्जनों परिवारों की महिलाओं के द्वारा इस त्योहार को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

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