Barabanki Uttar Pradesh: जिला अस्पताल बाराबंकी की बदहाली उजागर: सुविधाओं के नाम पर अमानवीय हालात, जिम्मेदार कौन

धारा लक्ष्य समाचार पत्र 

बाराबंकी। जिले का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल—रफ़ी अहमद किदवाई जिला चिकित्सालय—इन दिनों बदहाल व्यवस्था और लापरवाही का शिकार होता दिखाई दे रहा है। ग्रामीण क्षेत्र से लेकर शहर तक, अधिकतर मरीज इसी अस्पताल पर भरोसा करते हैं, लेकिन यहाँ की स्थिति देखकर ऐसा लगता है कि मानो कोई जिम्मेदार अधिकारी नियमित निरीक्षण के लिए नहीं आता।

स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक कई बार अस्पताल का दौरा कर चुके हैं और साफ कहा है कि “स्वास्थ्य के बजट में कोई कमी नहीं है।” जिला अस्पताल को भी पर्याप्त धन उपलब्ध है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ते चले जा रहे हैं।

टॉयलेट-बाथरूम की भयावह स्थिति

अस्पताल के टॉयलेट और बाथरूम की हालत इतनी खराब है कि प्रवेश करते ही तेज बदबू के कारण सांस लेना मुश्किल हो जाता है। मरीजों और तीमारदारों के लिए यह बेहद खतरनाक स्थिति है, खासकर दमा और सांस के मरीजों के लिए। कई लोग अंदर जाने से पहले ही लौट आते हैं।

ऑक्सीजन पॉइंट और स्विच बोर्ड खराब

कई वार्डों में ऑक्सीजन के स्विच बोर्ड महीनों से खराब पड़े हैं। मरीजों को एक कमरे से दूसरे कमरे तक शिफ्ट कर ऑक्सीजन लगानी पड़ रही है। यह लापरवाही गंभीर मरीजों के जीवन के लिए बड़ा खतरा बन चुकी है।

टूटी खिड़कियाँ, बढ़ा मच्छरों का खतरा

डेंगू और मलेरिया के मौसम में जहाँ मरीजों को सुरक्षित माहौल की सबसे अधिक आवश्यकता होती है, वहीं अस्पताल के कई वार्डों की खिड़कियों के शीशे टूटे हुए हैं और जालियाँ फटी हुई हैं। इससे डेंगू वार्ड में भर्ती मरीज भी मच्छरों के सीधे संपर्क में आ जा रहे हैं।

दीवारों का उखड़ा प्लास्टर, सालों से मरम्मत नहीं

अस्पताल की दीवारें जगह-जगह से उखड़ी दिखाई देती हैं। स्पष्ट है कि वर्षों से पेंटिंग और रpairing नहीं कराई गई। सरकारी अस्पताल की यह दुर्दशा जिम्मेदार अधिकारियों की अनदेखी को उजागर करती है।

अस्पताल परिसर में गंदगी की भरमार

मुख्य रास्तों पर गंदगी, थूक और कचरे का अम्बार लगा रहता है। मरीज और उनके परिजन रास्ते से गुजरने में भी असहज महसूस करते हैं। सफाई व्यवस्था कागज़ों तक ही सीमित दिखती है।

डेंगू वार्ड में ब्लोअर तक नहीं

डेंगू और वायरल बुखार के मरीजों के लिए ठंड से बचाव बेहद जरूरी है, लेकिन कई कमरों में ब्लोअर उपलब्ध ही नहीं हैं। जो कुछ वार्डों में रखे गए हैं, वे खराब पड़े हैं। मरीज ठंड में कांपते हुए इलाज कराने को मजबूर हैं।

गोदाम बने कमरे, मरीज जमीन पर बैठने को मजबूर

सीटी स्कैन विभाग में जहां रोजाना लंबी लाइनें लगती हैं, वहाँ बैठने के लिए सिर्फ एक कुर्सी रखी हुई है। बाकी मरीज फर्श पर बैठने को मजबूर हैं। कई कमरे बंद पड़े हैं, जैसे उन्हें गोदाम की तरह इस्तेमाल किया जा रहा हो।

अस्पताल प्रशासन सवालों के घेरे में

जब बजट की कमी नहीं है, तो फिर सुविधाएँ क्यों नहीं सुधर रहीं? क्या सीएमएस व्यवस्था संभालने में नाकाम हैं या फिर अस्पताल स्टाफ अपनी मनमानी पर उतारू है? विभागीय निरीक्षण के बावजूद हालात जस के तस हैं।

मरीजों का दर्द भी झलक उठा। मौके पर मौजूद एक मरीज ने बताया—“हमको यहाँ एक भी ब्लोअर नहीं मिला। कई वार्डों में ट्यूबलाइट तक खराब हैं और दो-एक वार्डों में तो करंट तक आता है। आखिर इस खतरे के बीच इलाज कराने के लिए मजबूर हम मरीजों की जिम्मेदारी कौन लेगा?”

अस्पताल की अव्यवस्था और लापरवाही का यह सिलसिला प्रश्न खड़ा करता है कि आखिर मरीजों की जान से कब तक खिलवाड़ होता रहेगा और सुधार की दिशा में ठोस कार्रवाई कब होगी।

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