धारा लक्ष्य समाचार पत्र
रिटायर्ड हूँ पर टायर्ड बिलकुल नहीं
ठीक ही कहा था उसने मैं सैनिक हूँ,
रिटायर्ड हूँ पर टायर्ड बिलकुल नहीं,
जिस दम ख़म से लड़ता था फ़ौज में,
उस से कम दम- ख़म है अब भी नहीं।
बहुत याद आते हैं वह पल, सेना में
हमने जो साथ साथ रहकर गुज़ारे थे,
श्रीनगर, कारगिल, लेह और द्रास में,
असम, मेघालय, मणिपुर व त्रिपुरा में।
बर्फीली वादियाँ ऊँची ऊँची चोटियाँ,
पतली सड़कें और गहरी सी नदियाँ,
गिरती पिघलती बर्फ़ में वे रेंगती थीं
हमारे फ़ौजी क़ाफ़िले की गाड़ियाँ।
किरासिन, कोयले की बुखारियाँ,
स्नो बूट पहनकर रूट मार्च करना,
कन्धे पर रायफल लाँग वाक करना,
छोटे, बड़े पिट्ठू के बोझ लाद चलना।
ऊँची ऊँची चोटियों में छिपे दुश्मन,
जंगली जानवरों से सावधान रहना,
फ़ौजी का हर पल मृत्यु मुख में जीना,
बंकर में रात दिन सजग सतर्क रहना।
हुये शहीद तो तिरंगे का है कफ़न,
कफ़न में दफ़न होते आये हैं अपन,
माँ-बाप,पत्नी-बच्चे और भाई बहन,
सभी पीछे छूट गये, छूटा प्यारा वतन।
जयहिंद जयजवान के नारे रह जाते हैं,
मृत्यु के उपरान्त क्लांत नितांत रह जाते हैं,
पराये तो पराये, अपने पराये हो जाते हैं,
फ़ौजी शहीद के घर वाले भी मर जाते हैं।
वह देश भी कितना अभागा है जिसके
सैनिक को सरकार से माँग करनी पड़े,
आदित्य सैनिक को किसी से सम्मान
सहित जीने की माँग क्यों करनी पड़ें।
डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’
लखनऊ
एक सैनिक व देश के नेता
सीमा के एक प्रहरी सैनिक व एक
नेता के बीच कितना अंतर होता है,
नेता प्रतिदिन घर परिवार में होता है,
सैनिक साल में एक बार घर आता है।
नेता, मन्त्री आरक्षित श्रेणी की हवाई
यात्रा करते हैं या रेल की एसी प्रथम
श्रेणी के माननीय विशिष्ठ यात्री होते हैं,
सैनिक रेलवे स्लीपर में धक्के खाते हैं।
नेता का वेतन व पेंशन एक समान हैं,
दो दो तीन तीन पेंशन भी वह लेते हैं,
जबकि सारे सैनिकों की पेंशन उनके
आख़िरी वेतन की आधी हो जाती है।
राजनीति के नेता का वैभवशाली व
विलासिताभरा जीवनयापन होता है
सीमा पर तैनात सिपाही के राशन
का भी औचित्य बताना पड़ता है।
सियासत दानों को बस देश की रक्षा
और सुरक्षा की प्रतिज्ञा लेनी होती है,
सीमा पर तैनात सिपाही को जान दे
कर भी सीमा की रक्षा करनी होती है।
सोने चाँदी की थाली चम्मच से नेता
मन्त्री अपना भोजन पानी करते हैं,
सीमा पर तो सिपाही खाने के लिए
अल्यूमिनियम की मेसटीन रखते हैं।
सैनिक सारा जीवन भर अपने देश
का एक वफ़ादार सिपाही रहता है,
दल बदलने की सुविधा के साथ ही
नेताओं का ठाट बाट देखते बनता है।
नेताओं का पहनावा मात्र दिखावा है
धवल सफ़ेदी खादी धारी पर अंदर
से काले, लाखों का सूट बूट होता है,
सैनिक ओजी वर्दी में हरदम होता है।
नेताओं के दुश्मन दिखावटी होते हैं,
आज सरकार में कल विपक्ष में होते हैं,
सैनिक का दुश्मन सीमा पर तैनात
वास्तविक देश के दुश्मन होते हैं।
एक बार चुनाव जीतकर नेता जी पूरे
जीवन के लिये कमाकर घर भरते हैं
सैनिक बेचारा पूरी सर्विस के बाद भी
बिना घर द्वार का मारा मारा फिरता है।
हर नागरिक देश का ऋणी होता है
देश पर जान लुटाने वाले सैनिक का,
जो अपनी पहली शपथ कभी नहीं
भूलता है याद रखे दिए गये वचनों का।
हे ईश्वर उनकी रक्षा करना जो देश
की ख़ातिर जान की बाज़ी लगाते हैं
आदित्य गर्व मुझे भी है अपने पर देश
की सेना में सारा जीवन देकर आये हैं।
डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’
लखनऊ
