दर्ज़ी का दार्शनिक अन्दाज़ लेखक के द्वारा लिखी गई ये कविता

प्रत्येक वस्तु को उसके महत्व के

अनुसार ही उचित जगह मिलती है,

उसी तरह जीवन में हर व्यक्ति को

योग्यता अनुसार स्थान मिलती है।

 

देखा जाता है कि दर्ज़ी जब कैंची

से कपड़े काटते हैं फ़िर कैंची को

पैर के नीचे दबा कर रख लेते हैं,

और फिर सुई से कपड़े सिलते हैं।

 

सिलाई के बाद वह सुई को अपनी

टोपी में लगाकर सुरक्षित रख लेते हैं,

एक दर्ज़ी से जब किसी ने यह पूछा,

कि वह हर बार ऐसा क्यों करते हैं।

 

दर्ज़ी ने इस प्रश्न का एक बहुत ही

दार्शनिक उत्तर मासूमियत से दिया,

उस उत्तर की दो पंक्तियों ने जीवन

मूल्यों का पूरा सार समझा दिया।

 

उत्तर था कैंची से काटने और सुई

से सिलकर जोड़ने का काम होता है,

लेकिन काटने, छाँटने, नफ़रत फैलाने

वाले का स्थान हमेशा नीचे होता है।

 

जोड़ने, आपसी भाईचारे औऱ प्रेम

का संदेश देने वाले इंसान का स्थान

सदैव ऊपर सिर माथे पर होता है,

इसलिए सुई को टोपी में लगाता है।

 

दर्ज़ी ने स्वीकारा कि वह काटने व

जोड़ने जैसे दोनो काम करता है,

आदित्य काट छाँट बाँटने सा होता है,

सुई से सिलाई जोड़ने जैसा होता है।

 

डा० कर्नल आदि शंकर मिश्र, ‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’

लखनऊ ‎

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