डा दिनेश तिवारी धारा लक्ष्य समाचार
अयोध्या ।श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन कथा वाचक गजानंद शास्त्री ने भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा सुनाई। भक्तवत्सल भगवान के जन्म पूर्व की घटनाओं को सुनकर सभी श्राेता भाव भक्ति में लीन हो गए।
उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा कि प्रत्येक को उनसे संस्कारों की सीख लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण स्वयं परमात्मा होते हुए भी अपने माता पिता के चरणों को प्रणाम करने में कभी संकोच नहीं करते थे।
धर्मरक्षा के लिए श्रीराम और कृष्ण ने जन्म लिया श्रीमद्भागवत कथा में पं गजानंद शास्त्री ने धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष की महत्ता पर प्रकाश डाला। साथ ही उन्होंने कहा कि जब-जब धरा पर अत्याचार, दुराचार, पापाचार बढ़ा है,तब-तब प्रभु का अवतार हुआ है।प्रभु का अवतार अत्याचार को समाप्त करने और धर्म की स्थापना के लिए होता है।
जब धरा पर मथुरा के राजा कंस के अत्याचार अत्यधिक बढ़ गए, तब धरती की करुण पुकार सुनकर श्री हरि विष्णु ने देवकी माता के अष्टम पुत्र के रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। इसी प्रकार त्रेता युग में लंकापति रावण के अत्याचारों से जब धरा डोलने लगी तब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने जन्म लिया। भगवान की बाल लीलाओं के प्रसंग सुन उपस्थित श्रोता भक्ति भाव में तल्लीन हो गए।

बालिकाओं को शिक्षित, संस्कारित और सुरक्षित रखें
कथा वाचक ने बालिकाओं का समाज और परिवार में महत्व बतलाते हुए कहा कि पुत्र केवल एक कुल का उद्धार करता है लेकिन पुत्री तीन कुलों तार देती है बेटियां इस संसार की जन्मदात्री है उन्हें शिक्षित,संस्कारित कर उनकी सदैव रक्षा करना चाहिये। उन्होंने बताया कि कृष्ण ने गोपियों के घर से केवल माखन चुराया अर्थात सारतत्व को ग्रहण किया और असार को छोड़ दिया।प्रभु हमें समझाना चाहते हैं कि सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है। इसलिए हमें अपने अंदर स्थित परमात्मा को प्राप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसी से जीवन का कल्याण संभव है।
कथा सुनकर भक्त आनन्दित हुए।इस मौके पर मुख्य यजमान राम निवास शुक्ल शिवम मिश्रा हिमांशु तिवारी राधेश्याम शर्मा, प्रदीप कुमार अजय शुक्ला अजीत शुक्ला शिव शंकर दूबे आदि भक्तों ने व्यासपीठ की आरती उतारी।
