भारत ने धार्मिक आधार पर यूएनएससी सदस्‍यता का किया विरोध

धारा लक्ष्य समाचार

न्यूयॉर्क। भारत सहित जी4 देशों ने संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में धार्मिक आधार पर स्‍थायी सदस्‍यता देने के किसी भी प्रस्‍ताव को संयुक्‍त राष्‍ट्र के नियमों के खिलाफ करार देते हुए मुस्लिम देश के आरक्षण के प्रस्‍ताव को खारिज कर दिया है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पी. हरीश ने यूएन मुख्यालय में आयोजित अंतर-सरकारी वार्ता (आईजीएन) बैठक में धर्म और आस्था के आधार पर किसी भी देश को यूएनएससी में प्रतिनिधित्व देने के प्रयासों की आलोचना की। भारत ने कहा कि यह क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के स्वीकृत आधार के बिल्कुल विपरीत है। उन्होंने कहा कि पाठ-आधारित वार्ता का विरोध करने वाले लोग यूएनएससी सुधारों पर प्रगति नहीं चाहते हैं। भारतीय राजदूत का यह बयान तुर्किए के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के बीते महीने दिए गए उस बयान के बाद आया है, जिसमें एर्दोगन ने कहा था कि एक इस्लामिक देश को भी सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाया जाना चाहिए।

भारत के साथ ही जी4 के अन्य तीनों सदस्यों – ब्राजील, जर्मनी और जापान ने भी धार्मिक आधार पर सुरक्षा परिषद की सदस्यता देने का विरोध किया है। जी4 देशों का कहना है कि क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व एक स्वीकृत आधार है, जो समय की कसौटी पर खतरा भी उतरा है। इस दौरान हरीश ने सुरक्षा परिषद के सदस्‍यों की संख्‍या बढ़ाने की भारत की मांग को भी दोहराया। उन्होंने कहा कि परिषद के सदस्‍यों की संख्‍या को 15 से बढ़ाकर 25 या 26 करना चाहिए, जिसमें 11 स्थायी सदस्य और 14 या 15 अस्थायी सदस्य शामिल हों।

बता दें कि फिलहाल यूएनएससी में 5 स्थायी तथा 10 अस्थायी सदस्य हैं, जिनमें से अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन स्थायी सीट वाले देश हैं। बाकी 10 सदस्यों को दो साल के कार्यकाल के लिए गैर-स्थायी सदस्यों के रूप में चुना जाता है। भारत पिछली बार 2021-22 में गैर-स्थायी सदस्य के रूप में परिषद में शामिल था।

वहीं दूसरी ओर भारत कई वर्षों से यूएनएससी की स्थायी सदस्यता हासिल करने के प्रयास कर रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस जैसे 4 स्थायी सदस्यों के साथ ही ग्लोबल साउथ के तमाम देश भी भारत की सदस्यता का समर्थन कर चुके हैं। मगर चीन इस राह में सबसे बड़ी रुकावट बना हुआ है। भारत-चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद और चीन का भारत को अपना क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी मानना इसके विरोध की मुख्य वजह हैं।

 

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