Shamli UP:शिव के गले को ठंडक देने के लिए चढाई जाती है जलधाराः पं. दिनेश पाठक

 धारा लक्ष्य समाचार 

 मनोज चौधरी ब्यूरो चीफ शामली

समुद्र मंथन से निकले कालकूट विष को पीने के बाद नीलकंठ बने शिव

रेलपार स्थित सदाशिव मंदिर में चल रही शिवपुराण कथा में उमडे श्रद्धालु

शामली। शहर के रेलपार स्थित सदाशिव मंदिर में चल रही शिवपुराण कथा में कथावाचक ने समुद्र मंथन की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि समुद्र मंथन से निकले विष को भगवान शिव ने अपने कंठ मंे उतारा, शिव के कंठ को ठंडक देने के लिए उन्हें जलधारा चढाई जाती है।

जानकारी के अनुसार सदाशिव मंदिर में चल रही शिवपुराण कथा को आगे बढाते हुए कथावाचक पं. दिनेश पाठक ने भगवान शिव का नाम नीलकंठ का वर्णन करते हुए बताया कि देवता और असुरों ने समुद्र से रत्न निकालने के लिए विचार किया। इसी बीच आकाशवाणी हुई जिसमें देवता व असुरों को क्षीर सागर का मंथन करने को कहा गया, मंदरांचल पर्वत की मथानी बनायी गयी, वासुकी नाग को रस्सी का रूप दिया गया, इसके बाद समुद्र मंथन शुरू हुआ जिससे निकली लक्ष्मी, कोस्तुभमणी शंख विष्णु जी ने लिया, ऐरावत हाथी इंद्र ने ले लिया, सूर्य ने घोडा लिया,

असुरों ने मदिरा ली वहीं मनुष्यों के लिए धनवंतरी वैद्य मिले लेकिन विष लेने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ, इसके बाद भगवान शिव ने कालकूट विष को धारण करते हुए उसे पी लिया, विष के प्रभाव के कारण शिव का कंठ नीला पड गया। इसके बाद से ही शिव को नीलकंठ महादेव कहा जाना लगेगा।

भगवान की गले की पीडा को शांत करने व ठंडक के लिए उन पर जलधारा अर्पित की जाती है। कथावाचक ने कहा कि मंथन के अंत में अमृत निकला जिसे लेने के लिए देवता व असुर आपस में भिड गए। इसके बाद भगवान विष्णु ने मोहनी रूप बनाया तथा असुरों से अमृत कलश ले लिया लेकिन धोखे से एक असुर ने अमृत पी लिया, विष्णु ने उसे पहचान लिया।

तथा अपने चक्र से उसके शीश को धड से अलग कर दिया जिसके बाद उसके दो भाग हुए जिनमें एक राहु और एक केतु नामक दो ग्रह बने, जो आज भी विराजमान है। इस अवसर पर बडी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।

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