ख़ुद ही मुद्दई, ख़ुद ही मुद्दालय, ख़ुद ही पुलिस ख़ुद न्यायालय, ख़ुद ही गवाह ख़ुद ही पैरोकारी, ख़ुद वकील ख़ुद जाँच अधिकारी। जहाँ तक वह देख सकते हैं, वहाँ तक सब उनके आधीन, न कोई नियम न कोई क़ानून, जो वह कह दें वही है क़ानून। न किसी का मान और न सम्मान, व्यर्थ के आरोप, व्यर्थ प्रत्यारोप, न कोई सबूत न कोई जानकारी, ज़्यादा जोश में मति गई है मारी। यह कलियुग है धोखा प्रिय है, पर इसका प्रसाद बारी बारी से, हमको तुमको सबको मिलता…
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