वसई विरार शहर नगर पालिका फॉरेस्ट और पुलिस अधिकारी मिल के चला रहे है अवैध निर्माण का गोरख धंधा आखिर क्या है मजबूरी की इस अवैध भूमाफिया और अवैध चॉल माफिया पर नहीं कर पा रही है कारवाई ?
प्रभाग समिती जी और में नहीं रुक रहा अवैध निर्माण का मेला
*मांडवी में फॉरेस्ट विभाग की जमीन पर अवैध निर्माण प्रशासन बना मूकदर्शक
मांडवी अंतर्गत फॉरेस्ट विभाग की जमीन पर रीता वैध बनपाल पद्माकर केन्द्रों अवैध चॉल और कंपनी बनाने का दे रहे है लीगल परमिशन
*वन अधिकारी रीता वैद्य और बनपाल पद्माकर केन्द्रों तहसीलदार और मनपा आयुक्त पर उठे सवाल* आखिर क्यू भूमाफिया के आगे घुटने टेक दिए है 
वसई-विरार क्षेत्र में ज़मीन के बढ़ते दामों के चलते ज़मीन माफिया सक्रिय हो गए हैं। आदिवासी और शर्तीय जमीनों पर अवैध चॉलें और निर्माण तेजी से खड़े किए जा रहे हैं। ऐसी ही एक घटना सामने आई है गांव मौजे चिंचोटी कोली गांव में, जहां मांडवी वन क्षेत्र अंतर्गत चिंचोटी कोली गांव के सामने में अवैध नव्य निर्मित चबूतरे और पक्के निर्माणों, अवैध इंडस्ट्रियल और चॉल बना कर भू माफिया, बड़े पैमाने पर कारोबार कर रहे हैं। 
रीता वैद्य (वनपरिक्षेत्र अधिकारी) और बनपाल पद्माकर केन्द्रों पर सवाल खड़ा हो रहा है की इतना सब होने के बावजूद यह हाथ पर हाथ रख कर बैठे हैं।
सूत्रों के अनुसार, यह जमीन पहले आदिवासियों को खेती और स्वयं की आजीविका के लिए दी गई थी । लेकिन भू-माफिया इस जमीन को सोने से भी महंगी समझकर अवैध घर और सड़कें बना रहे हैं और प्रशासन आंख मूंदे बैठा है। वन अधिकारी, तहसीलदार, प्रांत अधिकारी, महानगर पालिका आयुक्त सबकी भूमिका कटघरे में है। क्या इनकी मिलीभगत से यह निर्माण हुआ? क्या अधिकारियों को इस अवैध निर्माण की भनक तक नहीं लगी? 
जब जमीन फॉरेस्ट विभाग से रेवन्यू (महसूल) विभाग को ट्रांसफर होती है, तब उसकी सुरक्षा और निगरानी की जिम्मेदारी राजस्व विभाग की होती है। तहसीलदार, मनपा, जिला प्रशासन इन अवैध निर्माणों पर चुप क्यों हैं? यह गंभीर प्रश्न है।
*जमीन आदिवासियों की, मगर फायदा भू – माफियाओं को?*
वन विभाग की ओर से दी जाने वाली जमीनें केवल खेती और व्यक्तिगत उपयोग के लिए होती हैं। मगर भू-माफिया इन जमीनों पर चॉलें और इंडस्ट्रियल गाले बनाकर लाखों रुपये वसूल रहे हैं। सवाल ये है कि क्या प्रशासन खुद इनसे नजराना ले रहा है?
यह मामला केवल वन विभाग ही नहीं , बल्कि सभी प्रशासनिक विभागों के निकम्मेपन और मिलीभगत की बड़ी पोल खोलता है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार दोषियों पर नकेल कसी जाएगी और ज़मीन माफियाओं की रीढ़ तोड़ी जाएगी।
इस पूरे प्रकरण में वन विभाग,तहसीलदार, मनपा आयुक्त और राजस्व विभाग के अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की मांग समाजसेवियों और नागरिकों द्वारा की जा रही है।
अब देखना यह है की बनपाल पद्माकर केन्द्रों इन भूमाफिया पर कारवाई करेंगे?
