लोग बोलें — कुछ खास देशभक्त नेताजीयों की नाक अब केवल नाक नहीं रही—यह एक सांविधानिक संस्था, एक राष्ट्रीय धरोहर और एक राजनीतिक पथप्रदर्शक बन चुकी है।—
इन देश हितेषी नाक को अब “राष्ट्रीय नाक” घोषित किया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियां समझ सकें कि लोकतंत्र सिर्फ जनकल्याण से नहीं, बल्कि बयानबाज़ी और नाक की लंबाई से भी संचालित होता है।—-
इसी विकासशील नाक अब एक जीवंत धरोहर हैं, जिन्होंने कभी भी ग़रीब जनता को भड़काऊ, गुमराहु और भ्रमित करने वाले बयान नहीं दिये और दिखावटी देशभक्ति की शान तथा सत्ता का अहंकार कभी नहीं किया।—–
आज़ देश की राजनीति में विशेष नाक का महत्व अचानक इतना बढ़ गया है कि अब संविधान, कानून और लोकतंत्र की परिभाषाएं भी इसके इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही हैं।——-
नई दिल्ली,—संजय सागर सिंह। नोट: इस व्यंग्य में प्रयुक्त चित्रों का इस व्यंग्य में व्यक्त विचारों अथवा कथनों से कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध नहीं है। ये केवल प्रतीकात्मक रूप से उपयोग किए गए हैं और इनका उद्देश्य केवल व्यंग्य की प्रस्तुति को सशक्त बनाना है, न कि किसी व्यक्ति, संस्था या समूह को लक्षित करना।
आज़ देश की राजनीति में नाक का महत्व अचानक इतना बढ़ गया है कि अब संविधान, कानून और लोकतंत्र की परिभाषाएं भी इसके इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही हैं। कुछ खास नेताजीयों की नाक अब केवल नाक नहीं रही—यह एक सांविधानिक संस्था, एक राष्ट्रीय धरोहर और एक राजनीतिक पथप्रदर्शक बन चुकी है।
बुजुर्गों और लोगों का कहना है कि जब नेताजी पहली बार चुनाव लड़े थे, तब उनकी नाक आम इंसानों जैसी थी—संतुलित और विनम्र। मगर जैसे-जैसे उन्होंने देशहित और गरीबहित के ‘ऐतिहासिक कार्य’ किए, उनकी नाक लंबाई और ऊंचाई दोनों में बढ़ती गई। यह विकासशील नाक अब एक जीवंत धरोहर हैं, जिसने कभी भी ग़रीब जनता को भड़काऊ, गुमराहु और भ्रमित करने वाले बयान नहीं दिये और दिखावटी देशभक्ति की शान, सत्ता का अहंकार नहीं किया।
उन्होंने यह भी बताया कि अब वे नई पार्टी ( महा महा गठबंधन) बनाने की सोच रहे हैं ताकि पुरानी पार्टी पर कोई आपस में आरोप ना लगा सकें, फिर नई को पुरानी बनाएँ और पुरानी को नई।
राजनीति में भ्रम बनाए रखना ही उनका नया मिशन है। ये हारे ही नहीं! ये देश और ग़रीब हित में किये महान और ऐतिहासिक कार्यों की वजह से सस्ता से बाहर आज़ सड़कों पर हैं और जो बाकि हैं वो भी बहुत जल्द इसी स्तिथि में आने बाले हैं।
उन्होंने सरकार को सुझाव दिया है कि इस नाक को “राष्ट्रीय नाक” घोषित किया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियां समझ सकें कि लोकतंत्र सिर्फ जनकल्याण से नहीं, बल्कि बयानबाज़ी और नाक की लंबाई से भी संचालित होता है।
बड़ी नाक बोली:”हमारी हार जनता की जीत है, और जनता की जीत आखिर हमारी ही जीत है—मतलब, हम हारे ही नहीं! हम अपने अच्छे कार्यों की वजह से आज़ सड़कों पर हैं।”
एक बुजुर्ग ने जब नेताजी से पूछा कि उनकी नाक इतनी लंबी कैसे हो गई, तो उन्होंने मुस्कुराकर कहा, “ये देश की जनता के प्यार की वजह से हुई है।” हालांकि कोई यह पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाया कि ये प्यार कब फाड़काऊ और गुमराहु ‘बयानबाज़ी’ में बदल गया।
सत्ता में रहते हुए नेताजी के महान जनकल्याणकारी जवाब भी ऐतिहासिक थे:
“पानी नहीं आ रहा? तो समझिए हम जल संरक्षण को बढ़ावा दे रहे हैं!”

“बिजली नहीं है? आत्मनिर्भर बनिए, मोमबत्ती जलाइए, लालटेन से बचपन की यादें ताजा कीजिए!”
“अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं? बीमारियों से खुद लड़िए, प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाइए!”
जनता उनकी इन बातों में इतनी तल्लीन हो गई कि उसे लगने लगा, शायद समस्या में ही समाधान छुपा है।
चुनाव के समय नेताजी के भाषण और भी ऐतिहासिक हो जाते थे:
“हमने गरीबों के इतने काम किए हैं कि गिनने बैठोगे तो उंगलियाँ कम पड़ जाएंगी।”
जब जनता ने पूछा—”बताइए, कौन-कौन से काम?”
नेताजी बोले:
1. हमारी पार्टी मजबूत हुई,
2. हमारा परिवार समृद्ध हुआ,
3. हमारे करीबी ठेकेदारों की किस्मत चमकी…
और बाकी जनता खुद समझदार है।
सड़क, बिजली, पानी, सफाई व्यवस्था पर नेताजी के जवाब भी लाजवाब थे:
“सड़कों की हालत देख कर मत घबराइए, वोट जितनी लंबी संख्या में देंगे, उतनी लंबी सड़कें बनेंगी।”
“कूड़ा उठाना बाकी है, पर हमने उसे ऐतिहासिक कूड़ा घोषित कर दिया है। योजना बन रही है—चुनाव बाद उठ जाएगा।”
अंत में, जब चुनाव परिणाम आया और नाक बाले नेताजी हार गए।
इनका अंतिम दृश्य: नेताजी संसद भवन के गेट पर खड़े थे, नाक हवा में तनी हुई, और मन में एक ही ख्याल: “काश, हमारी पार्टी कि याददाश्त और काम भी मेरी नाक जितनी लम्बे और देश एवं ग़रीब जनता के हित में होते तो जनता हमें नफ़रत से कभी नकारती नहीं। काश! आगे मौका मिला तो हम भी देशहित, न्यायहित और ग़रीब जनता के हित में काम जरूर करेंगे, जिससे आने वाली पीड़ियां हमारा भी नाम गर्व से ले सके और हमारा भारत शांति एवं तरक्की के पथ पर और तेजी से अग्रसर हो।
