धारा लक्ष्य समाचार पत्र
saharanpur news uttar pradesh : मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, पटपड़गंज द्वारा आज एक जन-जागरूकता सत्र का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य गर्दन की स्पॉन्डिलाइटिस (सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस) जैसी डीजेनेरेटिव स्थिति की प्रारंभिक पहचान के महत्व को उजागर करना था। यह सत्र मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल पटपड़गंज के न्यूरो और स्पाइनल सर्जरी विभाग के प्रिंसिपल डायरेक्टर डॉ. अमिताभ गोयल की उपस्थिति में आयोजित किया गया,
जिन्होंने इस रोग के शुरुआती लक्षणों और उससे बचाव व उपचार के तरीकों पर विस्तार से प्रकाश डाला।
सत्र के दौरान मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल पटपड़गंज के न्यूरो और स्पाइनल सर्जरी विभाग के प्रिंसिपल डायरेक्टर डॉ. अमिताभ गोयल ने कहा, “इस सत्र का मुख्य उद्देश्य लोगों को सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस के कारणों, लक्षणों, शीघ्र पहचान और उपलब्ध उपचार विकल्पों के प्रति जागरूक करना था।
यह एक आम स्थिति है जो प्रायः नजरअंदाज हो जाती है जब तक कि यह पुरानी पीड़ा या न्यूरोलॉजिकल संबंधी जटिलताओं का कारण न बन जाए। गर्दन की यह समस्या, जिसे आमतौर पर ‘नेक अर्थराइटिस’ भी कहा जाता है,

अक्सर गर्दन में दर्द और अकड़न, सिर के पिछले हिस्से में सिरदर्द, गर्दन घुमाने पर किरकिराहट जैसी आवाज़, या हाथों में झुनझुनी और सुन्नता जैसे लक्षणों से शुरू होती है। ये लक्षण उम्र के साथ रीढ़ की हड्डियों में होने वाले घिसाव के कारण उत्पन्न होते हैं।”
डॉ. गोयल ने आगे बताया, “बचाव के लिए उचित बॉडी पोस्चर बनाए रखना विशेष रूप से आवश्यक है, खासकर लंबे समय तक बैठने या स्क्रीन देखने के दौरान। इसके अलावा, नियमित रूप से गर्दन और कंधे की एक्सरसाइज़, अचानक गर्दन घुमाने से बचाव, और कार्यस्थल को एर्गोनोमिक बनाना जरूरी है। सक्रिय जीवनशैली और स्वस्थ वजन बनाए रखना भी रीढ़ पर दबाव को कम करता है।”
आजकल की निष्क्रिय जीवनशैली, बढ़ा हुआ स्क्रीन टाइम और गलत बैठने की आदतों के चलते सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस की समस्या अब 30 वर्ष की उम्र से ही लोगों को प्रभावित कर रही है। इसकी शीघ्र पहचान और समय पर फिजियोथेरेपी अथवा चिकित्सकीय उपचार से जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है और गंभीर जटिलताओं से बचा जा सकता है।
डॉ. गोयल ने यह भी बताया कि जब पारंपरिक उपचार से राहत नहीं मिलती या गंभीर तंत्रिका संबंधी लक्षण जैसे कमजोरी, सुन्नता या स्पाइनल कॉर्ड पर दबाव देखा जाता है, तब सर्जिकल हस्तक्षेप की आवश्यकता हो सकती है। उन्होंने कहा, “गंभीर मामलों में, जहां नॉन-सर्जिकल इलाज से लाभ नहीं मिलता,
या न्यूरोलॉजिकल अथवा स्पाइनल कॉर्ड प्रभावित हो रही हो, वहां डीकम्प्रेशन और स्पाइनल फ्यूजन जैसी आधुनिक सर्जिकल तकनीकों का सहारा लिया जाता है। आज की आधुनिक और मिनिमल-इनवेसिव सर्जरी से मरीजों को तेज़ राहत और शीघ्र पुनर्प्राप्ति संभव होती है।”
